बिहार की राजधानी पटना से लगभग 5,500 किलोमीटर दूर, रूस के कुर्स्क ओब्लास्ट की क्षेत्रीय ड्यूमा में एक ऐसा चेहरा है जो न केवल भारतीय है, बल्कि जिसके खून में बिहार की राजनीति और मिट्टी की महक बसी है—उनका नाम है डॉ. अभय कुमार सिंह। वह रूस की राजनीति में सर्वोच्च मुकाम हासिल करने वाले पहले भारतीय मूल के व्यक्ति हैं। यह कहानी सिर्फ़ एक राजनीतिक जीत की नहीं, बल्कि एक छोटे से शहर के लड़के के दृढ़ संकल्प और विदेशी धरती पर सफलता के झंडे गाड़ने की है।
अभय कुमार सिंह का जन्म भले ही पटना में हुआ हो, लेकिन उनकी जड़ें सीवान ज़िले के पिनराथु कला गाँव से जुड़ी हैं। 1991 का वह दौर था जब बिहार के इस युवा ने मेडिकल की पढ़ाई के लिए रूस जाने का फैसला किया। उन्होंने कुर्स्क स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वह रूस सिर्फ़ डॉक्टर बनने गए थे, लेकिन किस्मत ने उनके लिए एक बड़ा राजनीतिक कैनवास तैयार कर रखा था। पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने मॉस्को वापस न जाकर कुर्स्क में ही रहने का फैसला किया।
📈 संघर्ष का मोड़: डॉक्टर से फार्मा किंग तक
एक विदेशी ज़मीन पर, जहाँ भाषा और संस्कृति बिल्कुल अलग थी, डॉ. अभय ने पहले एक क्लीनिक में काम किया। लेकिन उनकी दूरदर्शिता बड़ी थी। उन्होंने देखा कि फार्मास्यूटिकल सेक्टर में बड़ा अवसर है। उन्होंने अपनी कंपनी “मोस्कोव्स्काया फार्मेसी” की नींव रखी और अपनी मेहनत और व्यापारिक कौशल से इसे कुर्स्क क्षेत्र की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक बना दिया।
यहीं उनके जीवन का सबसे दिलचस्प मोड़ आता है। एक सफल कारोबारी के रूप में, उन्हें स्थानीय लोगों का विश्वास और सम्मान मिला। उन्होंने अपनी कंपनी के माध्यम से कई सामाजिक कार्य किए, जिससे वह कुर्स्क के लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हो गए। यहीं से उनके अंदर का “बिहारी नेता” जागृत हुआ, क्योंकि जैसा कि उन्होंने खुद कहा है, “राजनीति हमारे खून में है।”
🗳️ राजनीति में प्रवेश: पुतिन की पार्टी का विश्वास
वर्ष 2017 में, डॉ. अभय कुमार सिंह ने औपचारिक रूप से राजनीति में प्रवेश किया। वह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सबसे शक्तिशाली पार्टी—यूनाइटेड रूस (United Russia)—के टिकट पर कुर्स्क ओब्लास्ट की क्षेत्रीय ड्यूमा (विधानसभा) के लिए चुनाव लड़े। एक भारतीय, जो स्थानीय भाषा में महारत रखता था और जिसकी व्यापारिक सफलता ने हज़ारों को रोज़गार दिया था, उसे कुर्स्क की जनता ने दिल खोलकर अपनाया।
वह न सिर्फ 2017 में चुनाव जीते, बल्कि 2022 में उन्होंने यह जीत दोहराई। रूसी विधानसभा में डिपुटाट (विधायक) बनना किसी भारतीय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। उनकी जीत इस बात का प्रमाण है कि सेवा और समर्पण की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती।
🗣️ बिहारी अंदाज़ और जनता दरबार
डॉ. अभय कुमार सिंह ने अपनी भारतीय और खासकर बिहारी संस्कृति को रूस में भी जीवित रखा है। वह रूस में हर महीने ‘जनता दरबार’ लगाते हैं। इस जनता दरबार में सैकड़ों स्थानीय लोग अपनी समस्याएँ लेकर उनके पास पहुँचते हैं। यह ‘जनता दरबार’ का कॉन्सेप्ट बिहार की राजनीति से सीधा प्रेरित है, जहाँ नेता सीधे जनता से जुड़ते हैं।
निजी जीवन में भी वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने सीवान के सोनपिपर गाँव में शादी की। रूस में इतने वर्षों के बाद भी, उनका घर केवल भारतीय शाकाहारी भोजन ही पसंद करता है।
भारत-रूस सेतु: एस-500 की सिफ़ारिश
डॉ. अभय कुमार सिंह आज सिर्फ़ एक क्षेत्रीय विधायक नहीं हैं, बल्कि वह भारत और रूस के बीच एक मजबूत सांस्कृतिक और राजनीतिक सेतु भी हैं। राष्ट्रपति पुतिन के करीबी माने जाने वाले डॉ. सिंह ने कई बार सार्वजनिक मंचों से भारत को रूस से S-500 मिसाइल सिस्टम जैसे उन्नत हथियार खरीदने की सिफ़ारिश की है। वह दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिए लगातार कार्यरत रहते हैं।
डॉ. अभय कुमार सिंह की कहानी यह साबित करती है कि चाहे आप पटना से हों या कुर्स्क से, अगर नीयत साफ़ हो और सेवा का भाव हो, तो सफलता की कोई सीमा नहीं होती। बिहार की मिट्टी से रूसी संसद तक का उनका सफर करोड़ों प्रवासियों के लिए एक प्रेरणा है।