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मॉरीशस की राष्ट्रपति सीट तक बिहार का सफ़र: पृथ्वीराजसिंह रूपन की गिरमिटिया विरासत

फाइल फोटो: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू - मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन

मॉरीशस गणराज्य के वर्तमान राष्ट्रपति, पृथ्वीराजसिंह रूपन की कहानी जिनकी जड़ें भी बिहार से जुड़ी हुई हैं।

-क़मर फ़ारुकी

🚢 अप्रवास की पीड़ा और नई धरती पर जन्म

यह कहानी 19वीं सदी के मध्य में शुरू होती है, जब ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने हज़ारों भारतीयों को बेहतर जीवन की आस देकर मज़दूरी के लिए मॉरीशस जैसे दूरदराज के द्वीपों तक पहुँचाया। इन मज़दूरों को ‘गिरमिटिया’ कहा जाता था, और बिहार के छोटे-छोटे गाँवों से बड़ी संख्या में लोग उस समुद्री यात्रा पर निकले, जिसने उनकी नियति हमेशा के लिए बदल दी। इन्हीं गिरमिटिया श्रमिकों के वंशज हैं पृथ्वीराजसिंह रूपन, जिन्होंने मॉरीशस गणराज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद—राष्ट्रपति—को सुशोभित किया है।

पृथ्वीराजसिंह रूपन का जन्म 24 मई 1959 को मॉरीशस के ले मोर्ने विलेज में हुआ, लेकिन उनके डीएनए में आज भी बिहार की मिट्टी और विरासत का संघर्ष है। उनकी परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जहाँ भारतीय संस्कृति और भोजपुरी भाषा की गहरी छाप थी, जो मॉरीशस के भारतीय समुदाय की पहचान है। उनका जीवन एक तरह से गिरमिटिया पीढ़ी के संघर्ष को सफलता में बदलने का प्रतीक है।

📚 शिक्षा और निर्णायक मोड़: वकालत से राजनीति तक

राष्ट्रपति रूपन की शिक्षा असाधारण रही। उन्होंने मॉरीशस विश्वविद्यालय से विधि (कानून) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए यूनाइटेड किंगडम गए। उन्होंने लंदन में वकालत की डिग्री प्राप्त की और 1982 में मॉरीशस बार काउंसिल में दाखिला लिया। एक वकील के रूप में उन्होंने न्याय और समाज के बीच की जटिलताओं को नज़दीक से समझा, जिसने उन्हें राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया।

यह 1980 के दशक की शुरुआत थी जब मॉरीशस की राजनीति में बदलाव आ रहा था। पृथ्वीराजसिंह रूपन को महसूस हुआ कि वह केवल अदालत कक्ष में नहीं, बल्कि संसद के गलियारों में देश के लिए ज़्यादा बेहतर काम कर सकते हैं। यहीं उनके जीवन का निर्णायक मोड़ आया। उन्होंने वकालत छोड़कर सार्वजनिक जीवन और राजनीति को चुना।

🏛️ राजनीतिक उत्थान: मंत्री पद से राष्ट्रपति भवन तक

पृथ्वीराजसिंह रूपन ने मॉरीशस की प्रमुख राजनीतिक शक्ति मिलिटेंट सोशलिस्ट मूवमेंट (MSM) के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी खासियत उनकी बहुमुखी प्रतिभा रही है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले, जिनमें हर पद पर उन्होंने गहरी छाप छोड़ी।

  • सामाजिक एकीकरण मंत्री: इस भूमिका में, उन्होंने यह सुनिश्चित करने का काम किया कि मॉरीशस के विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक समूह एकजुट होकर रहें—एक ऐसा द्वीप जहाँ भारतीय, अफ्रीकी, चीनी और फ्रांसीसी मूल के लोग शांति से रहते हैं।
  • कला और संस्कृति मंत्री: इस पद पर, उन्होंने गिरमिटिया इतिहास और भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मॉरीशस में भोजपुरी और हिंदी जैसी भाषाओं को बढ़ावा दिया, जिससे उनकी बिहारी जड़ों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है।
  • क्षेत्रीय प्रशासन मंत्री: स्थानीय प्रशासन को मज़बूत करने के उनके प्रयास सराहनीय रहे।

अपनी कर्तव्यनिष्ठा और बेदाग छवि के कारण, वह प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के विश्वसनीय सहयोगी बने। 2019 में, उन्हें सर्वसम्मति से मॉरीशस गणराज्य का सातवां राष्ट्रपति नामित किया गया। राष्ट्रपति का पद मॉरीशस में संवैधानिक प्रमुख का होता है, जो देश की एकता और संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।

🤝 भारत से अटूट नाता: संस्कृति और विरासत का संरक्षण

राष्ट्रपति रूपन हमेशा अपनी भारतीय जड़ों और विशेष रूप से बिहार के साथ भावनात्मक लगाव को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते रहे हैं। मॉरीशस की कुल आबादी का लगभग 68% हिस्सा भारतीय मूल का है, और इनमें से अधिकांश की जड़ें उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं।

राष्ट्रपति रूपन अक्सर अपनी पहचान को उस ‘आपसी भाईचारे’ से जोड़ते हैं, जिसे गिरमिटिया पीढ़ी ने विपरीत परिस्थितियों में भी ज़िंदा रखा। उनका काम केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है—मॉरीशस में हिंदी, भोजपुरी और भारतीय त्योहारों को बढ़ावा देना उनकी विरासत का सम्मान है।

एक रोचक घटना यह है कि मॉरीशस के नेता अक्सर भारत आने पर बिहार के उन गाँवों का दौरा करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, जहाँ से उनके पूर्वज सैकड़ों साल पहले निकले थे। यह दर्शाता है कि सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने के बाद भी, उनका दिल आज भी उस दूरस्थ गंगा के मैदान से जुड़ा हुआ है।

🌍 विरासत और प्रभाव

पृथ्वीराजसिंह रूपन का जीवन मॉरीशस और भारत के बीच के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक जीवंत उदाहरण है। वह उन लाखों गिरमिटिया वंशजों के लिए प्रेरणा हैं जिन्होंने कठिन शुरुआत के बावजूद एक नए देश के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई।

मॉरीशस के राष्ट्रपति के रूप में, वह न केवल एक संवैधानिक प्रमुख हैं, बल्कि वह उस बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र के प्रतीक हैं जिसने अपनी पहचान को संघर्ष के साये से निकालकर वैश्विक मंच पर स्थापित किया है। बिहार की मिट्टी की इस संतान की कहानी विदेशी ज़मीन पर दृढ़ संकल्प, सेवा और असाधारण सफलता की गाथा है।

Source: Media WION/Reuters

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